Sushant singh Rajput: सबसे खतरनाक होता है,हमारे सपनों का मर जाना

सबसे ख़तरनाक होता है, हमारे सपनों का मर जाना...

जून की उमस भरी दोपहर में जिसने भी सुशांत सिंह राजपूत की खुदखुशी की ख़बर सुनी वह अंदर से ठिठुर गया। फ़िल्मी पर्दे का महेंद्र सिंह धोनी असल जिंदगी में हिट विकेट क्यों हो गया। फ़िल्मी पर्दे पर बेहद कामयाब पारी खेल रहे सुशांत सिंह ने अपनी गिल्लियां खुद क्यों बिखेर दी ?? काश वो पिच पर टिके रहते। कभी कभी कोई खबर ऐसी आती है,जिसे सुनकर यक़ीन ही नहीं होता। बस दिमाग में एक सवाल टंगा रह जाता है कि यह कैसे हो गया ?? क्यों हुआ ??

पटना से मुम्बई तक पहुँचने के लिए सुशांत ने न जाने कितनी यात्राएं की होंगी । कितने धक्के खाएं होंगे, ट्रेन और बस में कितनी बार खड़े खड़े सफ़र किया होगा। न जाने कितनी जगह ऑडिशन दिया होगा, कितनी जगह रिजेक्ट हुए होंगे। हजारों टेक रिटेक से गुजर कर जब वे 70 एम एम के बड़े परदे पर चमके तब तक शायद उनकी निजी जिंदगी में अंधेरा छा चुका था। जब उनकी पहली फ़िल्म रिलीज हुई होगी तो वे और उनके माता पिता कितने खुश हुए होंगे। उन्होंने अपने मेहनत से अपना सपना सच कर दिखाया । मुम्बई ने उन्हें शोहरत और कामयाबी दी, करोड़ों प्रशंसक दिए, पर अफसोस कि उनसे उनकी जिंदगी छीन ली। किस्मत भी क्या क्या खेल दिखाती है। जिसने अपनी अंतिम फ़िल्म 'छिछोरे' आत्महत्या और डिप्रेशन से लोगों को जागरूक करने के लिए बनाई उसके जीवन का अंत ही डिप्रेशन और आत्महत्या से हुआ। जिंदगी के साथ सुशांत का जो 'पवित्र रिश्ता' था उसे न जाने किस कारण से उन्होंने खुद ही खत्म कर दिया।

क्या शोहरत और कामयाबी ऐसी अदृश्य दीवारें खड़ी कर देती हैं कि व्यक्ति अन्ततः उसी में घुट जाता है। फ़िल्म एम एस धोनी में सुशांत सिंह का एक डॉयलॉग है " हमारी लाइफ में क्या चल रहा है, बस हम ही जानते हैं। रोज रात को जब क्वार्टर लौटते हैं तो लगता है जैसे आउट होकर पवेलियन लौट रहा हूँ।"  जिसे बेरोजगारी, संघर्ष, भूख नहीं हरा पाई, उसे आखिर किस चीज ने हरा दिया ?? आखिर वह कौन सा लम्हा होता है जब आदमी को अपनी  साँसें भी बोझ लगती हैं। क्या मन के अंधेरे कोने अमावस की रात से भी ज्यादा भयानक और डरावने होते हैं?? आखिर मौत जिंदगी के अनसुलझे सवालों का उत्तर क्यों बन जाती है ??

हमें लगा उसके पास सब कुछ है। उसे लगा अब उसके पास कुछ नहीं बचा। मानसिक तनाव के धारदार ब्लेड ने उनकी जिंदगी की डोर काट दी।

मई महीने के अंत में क्राइम पेट्रोल जैसे टीवी कार्यक्रम से देश भर में  लोकप्रियता हासिल कर चुकी प्रेक्षा मेहता ने आत्महत्या कर ली थी। प्रेक्षा की उम्र मात्र 25 साल थी।  मैंने इस युवा और प्रतिभावान कलाकर को कई बार TV पर देखा था। ख़बरों के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान काम न मिलने की वजह से  प्रेक्षा मेहता बेहद परेशान थी और वो इस कदर डिप्रेशन में थीं कि आत्महत्या के अलावा उन्हें दूसरा कोई रास्ता नज़र नहीं आया। काम न मिलने के कारण प्रेक्षा मुंबई से वापस अपने घर इंदौर लौट आयीं थीं ।प्रेक्षा मेहता ने आत्महत्या के वक्त कवि पाश की यह पंक्तियां  सुसाइड नोट्स में लिखी थी -

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती

पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती

ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती

सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना ।

क्या सुशांत सिंह के सपने भी दम तोड़ चुके थे ?? उन्हें सफल फिल्में, बड़े ब्रांड , पब्लिसिटी सब कुछ मिला ,पर कुछ तो था जिसके कारण अब वे जीना नहीं चाहते थे। आत्महत्या के बाद गुजर चुके व्यक्ति को बेहद करीब से जानने वाले दोस्त या  रिश्तेदार ये बात जरूर कहते हैं कि हमें यकीन ही नहीं है कि वह आदमी आत्महत्या कर सकता था। सुशांत सिंह के मामा और उनके कुछ दोस्त भी यही कह रहे हैं। किसी को भी यकीन नही है कि सुशान्त सिंह आत्महत्या कर सकते हैं। क्या इसका यह मतलब है कि आत्महत्या करनेवाले लोग एक वक्त में एक ही साथ कई अलग अलग जीवन जी रहे होते हैं। अपने सार्वजनिक जीवन में वो खुशमिज़ाज और मिलनसार नज़र आते हैं। जबकि दूसरे जीवन में वे भीतर ही भीतर कई  परेशानी से जूझ रहे होते हैं । सबने सुशान्त सिंह की सफल प्रोफेशनल लाइफ देखी पर उनकी पर्सनल लाइफ और इमोशनल क्राइसिस को वक्त रहते किसी ने नहीं देखा। शायद कोई वक्त रहते उन्हें थाम लेता तो यह दुःखद खबर नहीं आती।

पिछले 6 महीने से सुशांत सिंह का डिप्रेशन का इलाज चल रहा था। वे काफी तनाव और अकेलेपन में थे। हमारे देश में आज कैंसर और टीवी का मरीज भी खुल कर अपने रोग की चर्चा कर करता है पर मानसिक तनाव से गुजर रहे व्यक्ति को आज भी चुप  रहना पड़ता है। किसी रिश्ते में अंदर ही अंदर टूटा हुआ व्यक्ति सारे दर्द खुद में समेट कर रखता है। भावनात्मक अकेलेपन से जूझ रहा व्यक्ति इस कारण भी अपनी बात किसी को नहीं बताता कि पीठ पीछे लोग उसका मजाक बनाएंगे । अगर ऐसी स्थति किसी बड़े स्टार के साथ होती है तो उसे यह डर भी सताता है कि कहीं उसके अकेलेपन और मानसिक तनाव की खबर लीक हो गई तो मीडिया उसे मसाला न्यूज़ बना कर न छाप दे। और जब वे हालात न संभालने की स्थिति में होते हैं तो इस दुनिया को चुपचाप अलविदा कहकर निकल जाते  हैं। प्रेक्षा और सुशांत सिंह ने शायद ऐसा ही किया हो। पर क्या आत्महत्या किसी समस्या का  समाधान है ???

इरफ़ान खान, ऋषि कपूर और अब सुशांत सिंह...किसके सफ़र का अंत कब हो जाए किसी को पता नहीं। हँसते चेहरे भी अंदर अंदर घुटते रहते हैं । कई बार अशांत मन हर तरफ से हार कर शांति की खोज में चिरनिंद्रा का आलिंगन कर लेता है। कोरोना विश्व इतिहास का अदृश्य क्रूर काल है। इस काल में उत्सव वर्जित है, हमारे हिस्से में फिलहाल शोक मनाना ही है। हर आत्महत्या हम जिंदा लोगों के चेहरे पर टंगा हुआ एक अनुत्तरित सवाल है। काश कोई तो उसे समझने वाला होता..

#Sushant_singh_Rajput #Sushant

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